निर्भया केसः दोषियों को फांसी देते वक्त क्यों होती हैं इशारों में बातें, रुमाल का लेते हैं सहारा

निर्भया के दोषियों को अपने सभी कानूनी विकल्प आजमाने के लिए दिया गया सात दिन का समय कल यानी 11 फरवरी को खत्म हो जाएगा। माना जा रहा है कि कल सुप्रीम कोर्ट में दोषियों को अलग-अलग फांसी की सजा की याचिका पर फैसला आने के बाद जल्द ही दोषियों का नया डेथ वारंट भी जारी हो जाएगा। इसके साथ ही तिहाड़ में एक बार फिर फांसी की तैयारियां भी शुरू हो जाएंगी। क्या आप जानते हैं कि जब दोषी, जल्लाद और जेल अधिकारी फांसी घर में मौजूद होते हैं और फांसी दी जाने वाली होती है तो सभी खामोश होते हैं और पूरी प्रक्रिया इशारों में संपन्न की जाती है। जानिए आखिर ऐसा क्यों होता है...


बता दें कि सुबह की खामोशी में निर्भया के दोषियों को फांसी दी जाएगी। जेल मैन्युअल के मुताबिक, सुबह सूर्योदय के बाद ही फांसी दी जाती है। आमतौर पर गर्मियों में सुबह छह बजे और सर्दियों में सात बजे फांसी दी जाती है। फांसी घर लाने से पहले दोषी को सुबह पांच बजे  नहलाया जाता है। उसके बाद उसे नए कपड़े पहनाए जाते हैं। फिर चाय पीने के लिए दी जाती है। दोषी से नाश्ते के बारे में पूछा जाता है। अगर वह नाश्ता करना चाहता है तो उसे नाश्ता दिया जाता है।
फांसी देते वक्त कोई आवाज न हो इसके लिए पूरे बंदोबस्त किए जाते हैं। जब फांसी देने का वक्त आता है तो उसके लिए इशारे के तौर पर रुमाल को गिराया जाता है और जल्लाद लिवर खींचता है। सभी काम इशारों में इसलिए किया जाता है ताकि फांसी घर में मौजूद किसी भी शख्स का ध्यान भंग न हो और न ही जिन्हें फांसी दी जा रही है वो हिंसक हों। इसलिए पूरी प्रक्रिया बड़ी ही खामोशी से पूरी की जाती है।