जेएनयू और डीयू में शिक्षकों का हंगामा, प्रदर्शन, हड़ताल, कक्षाएं बाधित, एचआरडी से हस्तक्षेप की मांग

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छात्र कर रहे हॉस्टल मैनुअल रोलबैक, कुलपति को हटाने की मांग
एडहॉक शिक्षकों को नियमित करने, ईडब्ल्यूएस में शिक्षकों की भर्ती की मांग
एचआरडी से मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में बुधवार को शिक्षकों का दिनभगर हंगामा, प्रदर्शन, हड़ताल के चलते कक्षाएं बाधित रही। दोनों केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षक हॉस्टल मैनुअल रोलबैक, कुलपति को पद से हटाने, कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने, एडहॉक शिक्षकों को नियमित करने, ईडब्ल्यूएस में शिक्षक भर्ती, प्रमोशन में एडहॉक अनुभव शामिल करने और एचआरडी से पूरे मामले में हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। डीयू शिक्षकों ने मांग पूरी न होने पर सेमेस्टर परीक्षा की उत्तपुस्तिका न जांचने की भी चेतावनी दी है।


जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने बुधवार को भूख हड़ताल व विरोध धरने की कॉल दी थी। हॉस्टल मैनुअल रोलबैक को लेकर कैंपस में छात्र पिछले डेढ़ महीने से आंदोलन कर रहे हैं। इसी बीच विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रसंघ की बढ़ती दूरियों के चलते शिक्षक संघ भी छात्रों के साथ समर्थन में आ खड़ा हुआ है।


शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. डीके लोबियाल के मुताबिक, कैंपस को शांत करने के मकसद से मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से मुलाकात की मांग रखी पर उन्हें समय नहीं दिया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन कैंपस को शांत करने की बजाय छात्रों को सेमेस्टर परीक्षा में शामिल न होने पर दाखिला रद्द की चेतावनी दे रहा है। जबकि छात्र भी आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। 


प्रो. लोबियाल का कहना है कि यदि विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम है तो मंत्रालय को छात्रों की दिक्कत सुननी होगी। छात्रों की दिक्कत समझे बिना फैसले नहीं थोपे जा सकते। शिक्षक संघ छात्रों के इस फैसले में समर्थन देता हूं।


संसद सत्र में जेएनयू मामले पर सरकार से मांगे जवाब
जेएनयू शिक्षक संघ की ओर से सांसदों को पत्र लिखा गया है। इस पत्र के माध्यम से जेएनयू मामले पर संसद के दोनों सदनों में सरकार से जवाब मांगने की मांग रखी है। शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. डीके लोबियाल का कहना है कि कैंपस को इस तरह बर्बाद नहीं किया जा सकता। जेएनयू पॉलिर्यामेंट एक्ट के तहत गठित है।


इसलिए सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भी पीछे नहीं हट सकती है। इससे पहले जनवरी 2019 में 48 सांसदों ने मंत्रालय को पत्र लिखकर कुलपति के कामकाज पर सवाल उठाए थे। इसलिए सांसदों से आग्रह किया जाता है कि वे सरकार से इस पूरे मामले पर जवाब मांगे।